Internet In Hindi


इंटरनेट क्या है / what is internet
इन्टरनेट एक दुसरे से जुड़े कई कंप्यूटरों का जाल है जो राउटर एवं सर्वर के माध्यम से दुनिया के किसी भी कंप्यूटर को आपस में जोड़ता है. दुसरे शब्दों में कहे तो सूचनाओ के आदान प्रदान करने के लिए T C P/IP Protocol के माध्यम से दो कंप्यूटरों के बीच स्थापित सम्बन्ध को internet कहते हैं. इन्टरनेट विश्व का सबसे बड़ा नेटवर्क है.
इंटरनेट की खोज के पीछे कई लोगो का हाथ था. सबसे पहले  लियोनार्ड क्लेरॉक (Leonard Kleinrock )ने इंटरनेट बनाने की योजना बनाई बाद में 1962 में J.C.R. Licklider ने उस योजना के साथरोबर्ट टेलर (Robert Taylor) की मदद से एक Network बनाया जिसका नामARPANET “थाARPANET को  TELNET नाम से 1974  में व्यावसायिक रूप से उपयोग में लाया गया.
इंटरनेट का उपयोग
  • आपस में बात चीत कर सकते है
  • नए दोस्त बना सकते है
  • किसी भी फाइल को तुरंत ट्रान्सफर कर सकते है
  • online पढाई कर सकते है
  • घर बैठे शोपिंग कर कर सकते है
  • न्यूज़ पढ़ सकते है
  • मोबाइल, बिजली, phone का बिल जमा कर सकते है.
इन्टरनेट के फायदे
इन्टरनेट के बहुत से फायदे है. जहा आप बैठे बैठे  online banking, बिल, online t.v, movie, game, शोपिंग, और पढाई भी कर सकते है वही इसकी कुछ हानियाँ भी है. कुछ लोग इसके आदी हो जाते है और दिन दिन भर इससे चिपके रहते है जिससे उनकी आँखों की रौशनी कम हो सकती है, साथ यह लोगों ही स्मृति यानि याद्दाश्त को भी बहुत प्रभावित करता है साथ ही इन्टरनेट का इस्तेमाल करने से वायरस का भी खतरा रहता और कुछ हैकर आपकी निजी जानकारी को भी चुरा सकते है जो आपके लिए हानिकारक हो सकती है.

इंटरनेट का इतिहास

चलिये जानें कि इन्टरनेट की शुरूआत कहॉ से हुई और यह हमारे जीवन का हिस्सा कैसे बना, 1969 में अमेरिका के रक्षा विभाग (DOD) में एडवांस रिसर्च प्रोजेक् एजेंसी (0आर0पी00) नाम का नेटवर्क लांच किया गया, जो युद्ध के समय एक दूसरे को गोपनीय सूचना भेजने के प्रयोग में लाया गया। 1972 में रेटॉमलिसंन ने पहला ईमेल संदेश भेजा और जैसे जैसे ईमेल के जरिये सूचना भेजने के फायदों का पता चलता गया इसका प्रयोग भी बढता गया और इस तरह यह नेटवर्क लोकप्रिय हो गया। 1979 में ब्रिटिश डाकघर में पहली बार इण्टरनेट का प्रयोग प्राघोगिकी के रूप में किया गया। 1984 में इस नेटवर्क से लगभग 1000 से ज्यादा कम्प्यूटर जुड गये थे। धीरे धीरे दूसरे क्षेत्रों में भी सूचनाओं के आदान प्रदान करने के लिये इस नेकवर्क का प्रयोग किया जाने लगा और यह नेटवर्क बडा रूप धारण करने लगा। 1986 में इसे एन0एस0एफ0नेट का नाम दिया गया और धीरे धीरे सारी दुनिया को इण्टरनेट ने अपने कब्जे में कर लिया, आज केवल भारत में ही 1 करोड से ज्यादा व्‍‍यक्ति इन्टरनेट से प्रयोग करते हैं।
इंटरनेट आप तक कौन पहुचता है ?
जैसा कि हमने बताया है फाइबर ऑप्टिक केबल द्वारा आप तक इंटरनेट पहुॅचाया जाता है लेकिन आप तो जीयो, आयडिया या एयरटेल का इंंटरनेट इस्तेमाल करते हैं या कुुुछ लोग अपने शहर से लोकल इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) से इंटरनेट कनेक्शन लेते हैं, चलिये समझते हैं, इन तीनों लोगों की वजह से ही इंटरनेट आप तक पहुॅचा तो इसी आधार पर इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा है
  • TEAR 1 - वह इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) हैं जिन्होंने समुद्र में फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाये हैं, इन्हें Tier 1 networks के नाम से जाना जाता है, इसमें भारत की कंम्पनी Tata Communications भी शामिल है
  • TEAR 2 - वह इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) हैं जो Tier 1 Networks से इंटरनेट सेवा लेते हैं और आप तक पहुॅचाते हैं, जैसे जियो, आयडिया, वोडाफोन आदि 
  • TEAR 3 - ये वो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) है तो TEAR 2 से इंटरनेट सेवा लेते हैं और अपने लोकल ऐरिया में सर्विस देते हैं इनके पास लिमिडेट कनैक्शन देने का अधिकार होता है जैसे Tikona
    Anatomy of internet or component of internet

    Components of Network (नेटवर्क के अवयव)


    एक नेटवर्क में विभिन्न नेटवर्क उपकरण लगे होते हे इनमे से कुछ नेटवर्क का उपयोग करते है जैसे node एवं कुछ नेटवर्क को बनाने में प्रयुक्त होते है जैसे Bridge, Switch, modem, hub आदि|

    Modem (मॉडेम)

    मॉडेम शब्द मोड्युलेटरडीमोड्युलेटर का सक्षिप्त रूप है | डिजिटल सिग्नल को एनालोग सिग्नल से परिवर्तित करने करने की प्रक्रिया को मोड्युलेशन कहते है एनालोग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को डीमोड्युलेशन मॉडेम द्वारा डिजिटल माइक्रो कंप्यूटर एनालॉग टेलेफोन लाइनों के माध्यम से संचार कर पाते है | इस संचार के अंतर्गत ध्वनि तथा डाटा दोनों शामिल होते है |

    कंप्यूटर में मॉडेम का अनुप्रयोग

    मॉडेम द्वारा डाटा ट्रांसमिट करने की गति परिवर्तन शील होती है | ट्रांसफर गति अथवा ट्रांसफर दर नामक इस गति को बाईट प्रति सेकेंड (bps) में मापा जाता है | इसकी गति जितनी तीव्र होगी, उतनी ही तेज आप सूचना को भेज और प्राप्त कर सकते है | एक चित्र को 33.6 kbps मॉडेम से भेजने में 75 सेकेंड लगते है, जबकि 56 kbps मॉडेम में मात्र 45 सेकेंड लगते है |
    मूल रूप से मॉडमो के चार प्रकार होते हैबाह्य, आंतरिक, पीसी, कार्ड और वायरलेस |
    1. बाह्य मॉडम (External Modem)
    कंप्यूटर के बाहर स्थित इसे कंप्यूटर के सीरियल पोर्ट में एक केबल द्वारा जोड़ा जाता है| एक अन्य तार द्वारा मॉडेम को टेलीफोन लाइन में जोड़ते है |
    2. आंतरिक मॉडेम (Internal Modem) –
    यह सिस्टम यूनिट के भीतर स्थित एक प्लग-इन सर्किट बोर्ड होता है| इस मॉडेम को टेलीफोन केबल द्वारा टेलीफोन लाइन से जोड़ते है|
    3. PC Care Modem
    क्रेडिट कार्ड के आकार वाले इस एक्सपेंशन बोर्ड को पोर्टेबल कंप्यूटर के अन्दर लगाते हैं इसे टेलीफ़ोन केबल द्वारा टेलीफ़ोन लाइन से जोड़ते हैं |
    4. Wireless Modem
    बाह्य, आंतरिक अथवा पीसी कार्ड किसी प्रकार का हो सकता हैं अन्य मॉडेमों के विपरीत इसमें किसी प्रकार के तार का प्रयोग नहीं होता हैं | बल्कि यह वायु के माध्यम से संकेतों को भेजता और प्राप्त करता हैं|

    Hub (हब)

    यह LAN (Local Area Network) का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक हैं इसे कनेक्टर भी कहते हैं हब एक ऐसा डिवाइस  हैं जो LAN में एक केंद्र बिंदु (Central Point) का कार्य करती हैं| LAN के सभी नोड केबल द्वारा हब से जुड़े होते हैं दो नोड्स के बीच कम्युनिकेशन में डाटा सिग्नल हब के माध्यम से ही भेजा जाता हैं |

    हब को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है

    Dumb Hub
    यह हब केवल एक नोड से सिग्नल प्राप्त करके उसे उसी अवस्था में दुसरे नोड पर भेज देता हैं|
    Smart Hub
    यह हब सिग्नलों को ट्रांसमिट करने के अलावा नेटवर्क प्रबंधन की क्षमता भी रखता हैं |
    Intelligent Hub
    यह हब सभी प्रकार का नेटवर्क प्रबंधन कर सकता हैं | यह हब एक से अधिक टोपोलॉजी की सुविधा प्रदान करता हैं यह एक से अधिक LAN's को भी जोड़ सकता हैं कुछ हब रिपीटर ब्रिज का कार्य भी कर सकते हैं|

    Switch (स्विच)

    स्विच, ब्रिज का उन्नत रूप हैं इसकी क्षमता ब्रिज से ज्यादा होती हैं स्विच एक Multi-port bridge के रूप में कार्य करता हैं जो विभिन्न उपकरणों LAN में सेगमेंट (भाग) को जोड़ता हैं उसके लिए एक बफर होता हैं जब वह कोई पैकेट प्राप्त करता हैं तब वह प्राप्त करने वाली लिंक के बफर में उसे स्टोर कर लेता हैं और एड्रेस को Outgoing link के लिए चेक करता हैं कभी कभी C R C को भी चैक करता हैं | यदि Outgoing link फ्री होती हैं तब स्विच उस लिंक को वह फ्रेम भेज देता हैं

    स्विच का निर्माण दो अलग अलग तकनीको पर किया जाता हैं

  • Store and forward switch
  • Cut through switch

Router (राउटर)

एक ऐसा इंटर नेटवर्क डिवाइस होता हैं जो विभिन्न आर्किटेक्चर जैसेईथरनेट, टोकन रिंग इत्यादि को जोड़ने के लिए उपयोग किया जाता हैं इसके द्वारा एक लॉजिकल नेटवर्क से दुसरे नेटवर्क को पैकेट्स भेजे जा सकते हैं राऊटर का उपयोग उन बड़े बड़े इंटर नेटवर्क में होता हैं जो T C P/IP Protocol सूट  का उपयोग करते हैं |
राउटर O S I (Open system interconnection) रेफरेंस मॉडल की नेटवर्क लेयर पर कार्य करते हैं इनकी मदद से लॉजिकल एड्रेस का उपयोग करके नेटवर्क पर पैकेट्स को भेजते हैं राउटर पैकेट्स को उपलब्ध पाथ की कीमत के आधार पर भेजते हैं जिससे मैश नेटवर्क टोपोलॉजी में अधिक पाथ की समस्या हल हो जाती हैं| राउटर पैकेट्स के Destination नेटवर्क एड्रेस का उपयोग करते हैं और वे केवल तभी कार्य करते हैं जब उपयोग किये गए प्रोटोकॉल राउटेबल हो| ये ब्रिज से अलग होते हैं जो प्रोटोकॉल से स्वतंत्र होते हैं |

राउटर को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता हैं

  1. Static or Non-adaptive Routers
  2. Dynamic or adaptive Routers

ब्रिज (Bridge)

ब्रिज एक ऐसा नेटवर्किंग अवयव हैं जो नेटवर्क्स को विभाजित करता है ब्रिज O S I मॉडल की डाटा लिंक लेयर पर कार्य करता हैं | इनका उपयोग अलग अलग तरह के मीडिया जो जोड़ने के लिए किया जाता हैं ब्रिज सिग्नल को पुन: निर्मित तो करते हैं परन्तु किसी भी तरह का प्रोटोकॉल परिवर्तन नहीं करते हैं |

ब्रिज को तीन तरह से विभाजित किया जा सकता हैं


    1. Local Bridge
      Remote Bridge
      Wireless Bridge

      Gateway (गेटवे)

      गेटवे का उपयोग अलग अलग प्रोटोकॉल पर आधारित नेटवर्क जोड़ने के लिए किया जाता हैं | गेटवे एक ऐसा नाम हैं जो नेटवर्क अवयवों की एक बहुत बड़ी श्रेणी को प्रदर्शित करता हैं इसके द्वारा अलग अलग नेटवर्क आर्किटेक्चर अलग अलग प्रोटोकॉल्स के बीच कम्युनिकेशन संभव हो पाता हैं गेटवे नेटवर्किंग O S I मॉडल के ऊपर वाली लेयर्स पर कार्य करते हैं

      History of Internet

      मूलतः इन्टरनेट का प्रयोग अमेरिका की सेना के लिए किया गया था| शीत युद्ध के समय अमेरिकन सेना एक अच्छी, बड़ी, विश्वसनीय संचार सेवा चाहती थी | 1969 में ARPANET नाम का एक नेटवर्क बनाया गया जो चार कंप्यूटर को जोड़ कर बनाया गया था, तब इन्टरनेट की प्रगति सही तरीके से चालू हुई | 1972 तक इसमें जुड़ने वाले कंप्यूटर की संख्या 37 हो गई थी | 1973 तक इसका विस्तार इंग्लैंड और नार्वे तक हो गया | 1974 में Arpanet को सामान्य लोगो के लिए प्रयोग में लाया गया, जिसे टेलनेट के नाम से जाना गया | 1982 में नेटवर्क के लिए सामान्य नियम बनाये गए इन्हें प्रोटोकॉल कहा जाता है| इन प्रोटोकॉल को T C P/IP (Transmission control protocol/Internet Protocol) के नाम से जाना गया | 1990 में Arpanet को समाप्त कर दिया गया तथा नेटवर्क ऑफ नेटवर्क के रुप में इन्टरनेट बना रहा | वर्तमान में इन्टरनेट के माध्यम से लाखो या करोंड़ों कंप्यूटर एक दूसरे से जुड़े है | (VSNL) विदेश संचार निगम लिमिटेड भारत में इन्टरनेट के लिए नेटवर्क की सेवाए प्रदान करती है |
      वेब का इतिहास (History Of Web)
      वर्ल् वाइड वेब के अविष्कार से पहले इन्टरनेट का प्रयोग बहुत ही कठिन था। इस पर उपलब् सूचनाओं को खोजना तथा इसको प्रयोग में लाना और कठिन था। इन्टरनेट पर उपलब् फाइलों को ढूँढ़ना तथा उसे डाउनलोड करने के लिए यूनिक् स्किल्स (skills) तथा विशिष् टूल् की आवश्यकता पड़ती थी।
      टीम बर्नर्स ली (Tim Berners Lee) को वर्ल् वाइड वेब का जनक (Father Of World Wide Web) कहा जाता हैं बर्नर्स यूरोपियन आरगेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (European Organization For Nuclear Research ), स्वीटजरलैन् में कार्य कर रहे थे। वह इन्टरनेट का प्रयोग करने की जटिल विधि से बिल्कुल निराश हो चुके थे तथा हमेशा उन्हें आसानी से प्रयोग किये जाने वाले इन्टरफेस प्रोग्राम की आवश्यकता का एहसास होता था ताकि इन्टरनेट पर उपलब् सूचना को आसानी से एकत्र किया जा सके।
      सर्न (C E R N) में उनके कार्य के लिए हमेशा इन्टरनेट की आवश्यकता पड़ती थी। इन्टरनेट का उपयोग वह शोध, तथा अपने शोधकर्ता मित्रों के साथ सम्पर्क करने में करते थे। उन्हें इन्टरनेट के उपयोग किये जाने में आने वाली कठिनाइयों ने इस बात के लिए उनके अंदर ऐसे प्रणाली का विकास करने पर प्रेरित किया जो उनके काम को आसान बना सके। 1989 में, उन्होंने वर्ल् वाइड वेब के विकास के लिए सर्न (C E R N) के इलेक्ट्रॉनिक् एण् कम्प्यूटिंग फॉर फिजिक् (Electronics and Computing For Physics) विभाग को एक प्रस्ताव दिया लेकिन इस प्रस्ताव को बहुत अधिक स्वीकृति नहीं मिली। फिर जब दोबारा उन्होंने अपने मित्र रॉबर्ट कैलियो(Robert Cailliao) के साथ, प्रस्ताव की अस्वीकृति के कारणों पर विचार करने के बाद जमा किया, तब जाकर वह प्रस्ताव मंजूर किया गया और वर्ल् वाइड वेब के परियोजना का अधिकारिक तौर पर शुरूआत हुई। वेब के लिए उपयुक् धन भी प्रदान किया गया। 1991 में, इसके बारे में इन्टरनेट प्रयोगकर्ताओं को सूचना मिली फिर भी शायद ही लोगों ने सोचा होगा कि अब इन्टरनेट इतना सरल हो जायेगा।
      फरवरी 1993‍ में, नेशनल सेन्टर फॉर सुपरकम्प्यूटिंग एप्लिकेशन् (National Center for Super Computing Application-N C S A) ने मोजैक (Mosaic) का पहला संस्करण विण्डो के लिए बाजार में उपलब् कराया। यह वर्ल् वाइड वेब के लिए वरदान था जिसने वेब को सफलता के शिखर पर पहुँचा दिया। इसमें एक यूजर फ्रेन्डली ग्राफिकल यूजर इन्टरफेस का प्रयोग किया गया था जिसने उस समय के इन्टरनेट प्रयोक्ता को इन्टरनेट के प्रयोग की जटिलता से मुक् कराया। इसके अतिरिक्, मोजैक को माउस के द्वारा भी संचालित किया जा सकता था। अब प्रयोक्ता बगैर कीबोर्ड के भी इन्टरनेट का आनन् उठा सकते थे जोकि इन्टरनेट के क्षेत्र की एक अद्भुत प्रगति थी। वेब अब केवल हायपरटैक्स् नहीं था।
      वर्ल् वाइड वेब के अविष्कार के पश्चात् प्रयोक्ता को इन्टरनेट के विभिन् संसाधनों को एक्सेस करने के लिए विभिन् टूलों (tools) की आवश्यकता नहीं थी तथा वर्ल् वाइड वेब को हायपरमीडिया (hypermedia) भी कहा जाने लगा क्योंकि ये प्रोटोकॉल परस्पर संयोजित टैक्स्, वीडियो, ध्वनि तथा ग्राफिक् एक साथ सूचना की एक इकाई के रूप में प्रदान करते थे। वेब अब वैश्विक प्रणाली बन गया जिसे दुनियाभर में कही से भी एक्सेस किया जा सकता हैं।
      मोजैक के आने के बाद तो वेब ने सफलता के आकाश को ही माना छू लिया हो। 1994 में, मोजैक के पहले संस्करण के रिलीज (release) के बाद वेब ने नेशनल साइंस फाउन्डेशन (National Science Foundation) बैकबोन पर गेफर से ज्यादा ट्रैफिक (traffic) बना लिया था।

    Internet Terminology

    पासवर्ड क्रेकिंग (Password Cracking)

    कम्प्यूटर तथा नेटवर्क का पासवर्ड, कोडेड फार्म (Encrypted Cracking) मे स्टोर किया जाता हैं। क्रैकर साफ्टवेयर प्रोग्राम की मदद से कोडेड पासवर्ड का पता लगा लेते हैं। तथा इसका प्रयोग अवैध कार्यो(Illegal activities)तथा अनधिकृत उपयोग(Unauthorized use) के लिए करते हैं। Password Cracker एक ऐसा ही सॉफ्टवेयर  प्रोग्राम हैं।

    पैकेट स्निफिंग (Packet Sniffing)
    इंटरनेट पर डाटा को पैकेट में बांटकर भेजा जाता हैं। डाटा पैकेट्स को अपने Destination तक पहुंचने से पहले ही उसकी पहचान करके उसे रिकॉर्ड कर लेना जैकेट स्निफिंग कहलाता हैं।

    पैच (Patch)

    सॉफ्टवेयर कंपनियों द्वारा उपयोग के लिए जारी सॉफ्टवेयर में कई खामियां होती हैं। जिनका फायदा हैकर /क्रैकर उठाते हैं। सॉफ्टवेयर कंपनियों द्वारा इन कमियों में सुधार के लिए समयसमय पर छोटे सॉफ्टवेयर प्रोग्राम जारी किए जाते हैं, जिन्हें पैच कहा जाता हैं। ये पैच सॉफ्टवेयर मुख् सॉफ्टवेयर के साथ ही कार्य करते हैं।

    स्केअर वेयर (Scare Ware)

    यह कम्प्यूटर वायरस का एक प्रकार है जो इंटरनेट से जुड़े कम्प्यूटर को प्रभावित करता हैं। इसमें इंटरनेट से जुड़े उपयोगकर्ता को कोई फ्री एंटीवायरस या फ्री साफ्टवेयर डाउनलोड करने का लालच दिया जाता हैं। यह एक अधिकृत सॉफ्टवेयर की तरफ दिखता हैं, पंरतु इसे डाउनलोड करते ही वायरस कम्प्यूटर में प्रवेश कर जाता हैं।

    फिशिंग (Phishing)

    इंटरनेट पर इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के यूजर नेम, पासवर्ड तथा अन् व्यक्तिगत सूचनाओं को प्राप् करने का प्रयास करना फिशिंग (Phishing) कहलाता हैं। इसेके लिए उपयोगकर्ता को झूठे (Fake) मेल या संदेश भेजे जाते हैं जो दिखने में वैध  (Legitimate) वेबसाइट से आये हुए लगते हैं। इन मेल या संदेश में उपायोगकर्ता को अपना  यूजरनेम, लॉग इन आई डी (Login ID) या पासवर्ड तथा अन् विवरण डालने को  कहा जाता हैं। जिनके आधार पर उपयोगकर्ता के गुप् विवरणों की जानकारी प्राप् की जा सकती हैं।

    डिजिटल सिग्नेचर (Digital Signature )

    यह कम्प्यूटर नेटवर्क पर किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने, उसकी स्वीकृति (Approval) प्राप् करने तथा किसी तथ् को सत्यापित (Verify) करने की एक पद्धति हैं। इसमें नेटवर्क सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाता हैं।
    डिजिटल सिग्‍नेचर तकनीक का प्रयोग कम्‍प्‍यूटर पर स्‍टोर किए गए किसी डाक्‍युमेंट का प्रिंट लिए बिना उस पर हस्‍ताक्षर करने के लिए किया जाता हैं।
    डिजिटल सिग्‍नेचर किसी मैसेज या डाक्‍युमेंट के साथ जुड़ जाता हैं। तथा उसकी वैधता (Authenticity) प्रमाणित करता हैं। डिजिटल सिग्‍नेचर कम्‍प्‍यूटर पर कोडेड फार्म में स्‍टोर किया जाता हैं ताकि उसे अनधिकृत उपयोगकर्ताओं की पहुंच से दूर रखा जाए। ई – कामर्स तथा ई प्रशासन (E – governance) में इसका प्रयोग प्रचलित हो रहा हैं।

    Spam (स्पैम)

    कम्‍प्‍यूटर तथा इंटरनेट का प्रयोग कर अनेक व्‍यक्तियों को अवां‍छित तथा अवैध रूप से भेजा गया संदेश स्‍पैम कहलाता हैं। इसे नेटवर्क के दुरूपयोग के रूप में जाना जाता हैं। यह ई – मेल संदेश का अभेदकारी वितरण (Non-distributional distribution)हैं जो ई – मेल तंत्र में सदस्‍यता के (Overlapping) के कारण संभव हो पाता हैं।

    Spam सामान्यत: कम्प्यूटर नेटवर्क तथा डाटा को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। वास्तव में Spam एक छोटा 
    प्रोग्राम है जिसें हजारों की संख्या में इंटरनेट पर भेजा जाता हैं ताकि वे इंटरनेट user की साइट पर बारबार प्रदर्शित हो सकें। Spam मुख्यत: विज्ञापन होते हैं जिसे सामान्यत: लोग देखना नहीं चाहते। अत: इसे बारबार भेजकर उपयोगकर्ता का ध्यान आकृष् किया जाता हैं।

    चूकिं Spam भेजने का खर्च उपयोगकर्ता (Client) या सर्विस प्रोवाइडर पर पड़ता हैं अत: इसे विज्ञापन के एक सस्ते माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। इंटरनेट की विशालता के कारण स्पैम भेजने वाले (Spammer) को पकड़ पाना कठिन होता है। Spam Filter या Anti Spam Software का प्रयोग कर इससे बचा जा सकता हैं

    Netiquette
    साइबर स्पेस के शिष्टाचार और नियम नेट एटिकेट या नेट कंफर्ट जोन के रूप में जाने जाते हैं। इंटरनेट एटिकेट सीखने के लिए आपको अधिकांश उन सारे नियमों का पालन करने की आवश्यकता है जिनका इस्तेमाल आप साधारण पत्र लिखने में करते हैं।

    यहां व्यक्ति को संबोधित करने के उचित तरीके सहित, सही व्याकरण का इस्तेमाल भी जरूरी है। हम बता रहे हैं आपको कुछ जरूरी बातें जिन्हें कम्यूनिकेशन के लिए साइबर स्पेस का इस्तेमाल करते हुए ध्यान रखना फायदेमंद है।

    Applications of Internet
    1. Communication :- internet के माध्यम से संपर्क करना आसान तेज एवं सस्ता हो गया है इन्टरनेट में ईमेल,chat आदि टूल के द्वारा हम एक साथ एक से अधिक व्यक्तियों से बात कर सकते है | ईमेल में टेक्स्ट के साथ इमेज,फोटो,मूवी आदि भी भेज सकते है |
    2. Education:- internet के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बदलाव आये है, व्यक्ति इन्टरनेट के माध्यम से किसी ही बुक या किसी भी टॉपिक के बारे में इनफार्मेशन को देख सकता है, इसके आलावा वर्चुअल क्लास के माध्यम से घर बैठे शिक्षा प्राप्त की जा सकती है |
    3. Business:- इन्टरनेट के माध्यम से व्यापर के क्षेत्र में क्रांति आयी है, इन्टरनेट के द्वारा किसी भी व्यापर को एक बड़ेस्तर पर किया जा सकता है| जिससे ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सके |
    4. Entertainment:– इन्टरनेट के माध्यम से किसी भी मूवी को डाउनलोड किया जा सकता है, ऑनलाइन shows देखे जा सकते है | और किसी भी गाने को सुना जा सकता है या प्राप्त किया जा सकता है |जिससे घर बैठे मनोरंजन किया जा सकता है|
    5. Medicine:- चिक्तिसा के क्षेत्र में इन्टरनेट का बड़े स्टेट पर यूज किया जाता है, जैसे किसी मरीज की रिपोर्ट को भेजना | विभिन्न दवाइयों के बारे में इनफार्मेशन को देखना आदि कार्यो के लिए इन्टरनेट का बड़े स्तर पर यूज किया जाता है|
    6. Shopping:- इन्टरनेट के माध्यम से घर बैठे शॉपिंग की जा सकती है, चाहे वह कोई भी सामान या प्रोडक्ट हो|
     – कॉमर्स क्या हैं :-

    -कॉमर्स को विस्तार रूप से इलेक्ट्रानिक कॉमर्स भी कहते है | - कॉमर्स खरीददारी, बेचना, मार्केटिंग, तथा प्रोडक्टो की सर्विस इत्यादि से मिलकर बना होता है | ये सेवाएं कंप्यूटर नेटवर्क पर भी की जाती है | -कॉमर्स कंप्यूटर के माध्यम से व्यापार  करने की व्यवस्था है | कंप्यूटर नेटवर्क के माध्यम से बिजनेस से संबंधित फाईलो को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है | कोई भी कंपनी अपने प्रोडक्ट के बारे में विस्तारपूर्वक व्याख्या कर सकती है हम इन्टरनेट के माध्यम से कंप्यूटर के सामने बैठकर किसी भी प्रोडक्ट को खरीद सकते है | “इलेक्ट्रानिक विधियों जैसे- EDI (electronic data inter change) तथा ऑटोमेटेड डाटा कलेक्शन के माध्यम से बिजनेस कमर्शियल कम्युनिकेशंस तथा मैनेजमेंट को कंडक्ट करने की सुविधा को -कोमर्स कहते है”|- कॉमर्स इन्टरनेट पर प्रोडक्टो को बेचना तथा खरीदना और व्यापार तथा उपभोक्ताओ के द्धारा सेवाए उपलब्ध कराने की टेक्निक है |

     – कॉमर्स का इतिहास:-

    1970 में EDI (electronic data inter change) तकनीक का प्रयोग करके -कॉमर्स को Introduce किया गया था | इसके माध्यम से व्यावसायिक दस्तावेजो जैसेपरचेज आर्डर, Invoice को इलेक्ट्रोनिक रूप से भेजा जाता था | बाद में इसे अधिक गतिविधियों के रूप में वेब फॉर्म्स के नाम से जाना जाने लगा | इसका उद्देश्य Goods and Products की खरीददारी WWW के ऊपर HTTP सर्वर के द्धारा -शॉपिंगइलेक्ट्रोनिक भुगतान सेवाए इत्यादि करना था | carts तथा इलेक्ट्रोनिक भुगतान सेवाए इत्यादि करना था |

    कंप्यूटर
    का प्रयोग हर क्षेत्र में अधिक से अधिक होने लगा है | बिजनेस मेन अपने व्यवसाय का विस्तार भी कंप्यूटर के माध्यम करने लगे है | इसके प्रयोग से कम समय में अधिक से अधिक कार्य संपन्न हो जाता है तथा कोई भी सूचना कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पूरी दुनिया को कही भी भेजी जा सकती है | यह सूचना टेक्स्ट, ऑडियो, इमेज ग्राफ़िक्स इत्यादि फोर्मेट में हो सकती है | आज कल के व्यवसायी -कॉमर्स तकनीक का प्रयोग अपने अपने क्षेत्र में करके विश्व में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहे है |

    गवर्नेंस क्या हैं?
    गवर्नेंस का मतलब सभी सरकारी कार्यों को ऑनलाइन सर्विस के माध्यम से जनता तक आसानी से पहुंचाना| जिससे सरकारी कार्योलयों और जनता दोनों के पैसे और समय की बचत हो सके, और बार बार आपको विभिन्न दफ्तरों के चक्कर लगाना पड़े| सीधे शब्दों में कहें तो गवर्नेंस के तहत सभी सरकारी कामकाजों को ऑनलाइन कर दिया गया है जिससे जनता घर बैठे विभिन्न कार्यों के लिए ऑनलाइन ही अप्लाई कर सके|
    सरकार की आम नागरिकों के लिए उपलब्ध सुविधाओं को इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध कराना -गवर्नेंस या -शासन कहलाता है। इसके अंतर्गत शासकीय सेवाएँ और सूचनाएँ ऑनलाइन उपलब्ध होती हैं। भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक विभाग की स्थापना 1970 में की और 1977 में नेशनल इंफ़ॉर्मेटिक्स सेंटर की स्थापना -शासन की दिशा में पहला कदम था।
    आज भारत सरकार और लगभग सभी प्रमुख हिन्दी भाषी राज्यों की सरकारें आम जनता के लिए अपनी सुविधाएँ इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध करा रही हैं। विद्यालय में दाखिला हो, बिल भरना हो या आयजाति का प्रमाणपत्र बनावाना हो, सभी मूलभूत सुविधाएँ हिन्दी में उपलब्ध हैं। इस दिशा में अभी शुरुआत ही हुई है तथा माना जा रहा है कि आने वाले समय में सभी मूलभूत सरकारी सुविधाएँ कंप्यूटर तथा मोबाइल के माध्यम से मिलने लगेंगी जिससे समय, धन तथा श्रम की बचत होगी तथा देश के विकास में योगदान मिलेगा।

    -गवर्नेंस के अंतर्गत आने वाले कार्य
    • आप ऑनलाइन बैंकिंग के जरिये सभी बेकिंग सेवाओ का लाभ उठा सकते हैं|
    • GST से सम्बंधित सभी कार्य ऑनलाइन ही कर सकते हैं|
    • बिजली, पानी, टेलीफोन, मोबाइल, DTH इत्यादि के बिल ऑनलाइन भरे जा सकते हैं|
    • PAN कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड, पासपोर्ट, जाती प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र का सत्यापन|
    • आयकर रिटर्न फाइलिंग के सभी कार्य ऑनलाइन किये जा सकते हैं|
    • ट्रेन, बस और हवाई जहाज की टिकट ऑनलाइन बुक कर सकते हैं|

    Types of E-governance

    E-governance 4 प्रकार की होती है और चारो की एक अलग प्रणाली तथा कार्य श्रंखला होती है| जिसके तहत वह कार्य करती है, इसमे एक पूरा System बना होता है, जो उदेश्य प्राप्ति के लिए मदद करता है| इसके प्रकार कुछ इस प्रकार है:-
    1. G2G (Government to Government):- जी 2 जी यानी सरकार से सरकार, जब सूचना और सेवाओं का आदान-प्रदान सरकार की परिधि में होता है, इसे जी 2 जी इंटरैक्शन कहा जाता है| यह विभिन्न सरकारी संस्थाओं और राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारी संस्थाओं के बीच और इकाई के विभिन्न स्तरों के बीच कार्य करता है।
    2. G2C (Government to Citizen):- जी 2 सी यानी सरकार से नागरिक, यह सरकार और आम जनता के बीच बातचीत को जी 2 सी कहते है। यहां एक प्रकिया सरकार और नागरिकों के बीच स्थापित कि गई है, जिससे नागरिक विभिन्न प्रकार की सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच सकते हैं। नागरिकों को किसी भी समय, कहीं भी सरकारी नीतियों पर अपने विचारों और शिकायतों को साझा करने की स्वतंत्रता है 
    3. G2B (Government to Business):- जी 2 बी यानी सरकार से व्यवसाय, इसमे -गवर्नेंस बिजनेस क्लास को सरकार के साथ सहज तरीके से बातचीत करने में मदद करता है। इसका उद्देश्य व्यापार के माहौल में और सरकार के साथ बातचीत करते समय पारदर्शिता स्थापित करना है।
    4. G2E (Government to Employees):- जी 2 यानी सरकार से कर्मचारी, किसी भी देश की सरकार सबसे बड़ी नियोक्ता है और इसलिए वह नियमित आधार पर कर्मचारियों के साथ काम करती है, यह सरकार और कर्मचारियों के बीच कुशलता और तेजी से संपर्क बनाने में मदद करता है, साथ ही उनके लाभों को बढ़ाकर उनके संतुष्टि स्तर तक पहुँचाने में मदद करता है|

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